लाल किला की सैर ।

दरअसल, जिंदगी में नए नए दोस्तों का आना जाना लगा रहता हैं। बचपन में लट्टू, गुल्ली-डंडा, गोली और लुका-छिपी जैसे बहुत सारे खेल बिना किसी जिंदगी की परवाह के गुजार लेते है। कुछ साल बाद धीरे-धीरे सब छूटते जाते है ।

ऐसे ही एक दोस्त है रविन्द्र दुबे, जो 2009 में जॉब के बाद पहली बार मिले, उन्होंने कल फ़ोन किया।

“सुजीत, कल मै आ रहा हूँ । कही घूमने चला जायेगा।

अगली सुबह ड्यूटी थी, कुछ असमंजस में था कि कही ऐसा न हो, ड्यूटी की वजह से मैं उनका सपना साकार करने में पीछे रह जाऊ ।

शहरों में अक्सर एक समस्या आती है। कोई भी आदमी बिना काम का नहीं है और दूसरी बात कार्य मे व्यस्त होने की वजह से अगर सही वक्त पर फ़ोन नहीं उठाये तो सामने वाला के मन में क्या क्या प्रश्नचिन्ह उमड़ पड़े, कहना मुश्किल है ।

सुबह उनका दिल्ली आगमन हुआ और डयूटी की वजह से कुछ समय उनका मैंने बर्बाद जरूर किया, उसका मुझे खेद रहा ।

दरअसल इस साल अब तक मैं मुगल गार्डन नहीं घूम पाया था तो एकाएक दिमाग मे आया, मुगल गार्डन चलते है । फटाफट मोबाइल में गार्डन बंद होने की अंतिम तिथि निकाले तो पाया कि 06.03.2018.पढकर बहुत खुश हुआ कि चलो अंतिम समय ही सही घूम तो लेंगे वरन पूरे साल अफसोस रह जाएगा। पिछली बार मुगल गार्डन हम सब पहुँचे थे, क्या गजब का नजारा था ! खूबसूरत बगीचे और उनमें लगा हुआ फूलों की खुश्बू अपने पहचान से बखूबी एहसास करा रही थी, एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में पहुँचते ही अलग अलग की खुश्बू, संगीत पे पानी के फव्वारों का मनमोहक नृत्य……..

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सो हम लोग चार आदमी हो लिए और नई दिल्ली से केंद्रीय सचिवालय के लिए मेट्रो पकड़े ही थे। पटेल चौक मेट्रो पहुँच चुके थे कि एक बार पुनः मोबाइल में अन्तिम तिथि देखने का मन किया, ऐसी सोच हमारे लिए अशुभ संकेत था। मुगल गार्डन की खुले रहने का आखिरी समय शाम 04.00 बजे था । अब हमलोग अवाक रह गये और हताश निराश, स्वप्नों की उल्लास क्षण भर में उल्टी गंगा बहने को मजबूर कर गई । आखिरकार हमलोग अपना मुँह लाल किला की तरफ कर लिए ….

लाल किला के सामने से मैं लगभग दस बार से ज्यादा गया होगा, चाहे चाँदनी चौक मार्केट हो या चोर बाजार, वहाँ का प्रसिद्ध शिव मंदिर हो या जामा मस्जिद पर भीतर एक बार ही घूम पाया था।

सघन जाँच पड़ताल चल रहा था। कुल दो जगह टिकट जाँच और दो जगह सिक्युरिटी सिस्टम से निकले।

लाहौर द्वार :- लाल किला के मुख्य द्वार से भीतर घुसते ही लाहौर द्वार दिखा। लाल रेत पत्थर से बने इसका निर्माण मुगल सम्राट शाहजहाँ ने कराया था।लाल किला के अग्र भाग के बीचोंबीच देश के अभिमान, सम्मान अपनी गौरवशाली पताका लहराता देख एक सलूट किया। वाकई मुझे अपने तिरंगे को देखकर बहुत खुशी महसूस होता है ।

जय हिन्द !

छत्ता चौक :- हम अब भीतर घुस चुके थे और घुसने के साथ ही लगभग 40 मीटर की एक इमारत है जो गहरे लाल पत्थर की बनी हुई है और उसमें दोनों तरफ श्रृंगार की दुकानें लगी हुई है जिसमें चूड़ियाँ, कश्मीरी शाल, शंखा पोला, बालियां, रूमाल, टोपी और चश्मे की दुकानें लगी हुई है । कहते है कि शाहजहाँ ने पाकिस्तान के पेशावर में ऐसी इमारत देखकर इसे बनाया था ।

अब आगे निकल कर हम भारतीय पुरातात्विक संग्रहालय पहुँचे, जहाँ के लिए अलग से टिकट लेना होता है, भी टिकट चेक करा के अंदर प्रवेश किये । अस्त्रो-शस्त्रो के संग्रहालय में क्या खूब हथियारों का जखीरा देखकर अवाक रह गये ।

अब हम लोगों मुमताज महल की तरफ़ रवाना होने वाले थे, की दोस्तों ने खुबसूरत नजारा देखकर पुनः फ़ोटो लेने की इच्छा जताई ।

पुनः कदम अग्रसर हो दीवान -ए-खास की खूबसूरती को खूब निहारें, लाल बलुआ पत्थर के स्तंभों से निर्मित यह क्या खूब भा रहा था, इसकी मेहराव की इतनी सुंदर कारीगरी दिल छू लिया ।

अब अंतिम पड़ाव था, रंगमहल ।

रंगमहल के आस-पास काम चल रहा था इसकी वजह से उधर हम पूरी तरह से नहीं घूम पाये, हाँ रंगमहल के ठीक सामने एक पानी का तालाब जैसा फ़वारा लगा हुआ है जो फिलहाल बन्द हालत में मिला । उस फ़वारे रूपी तालाब के किनारें पर कुछ देर विश्राम कर वापिस लौटने लगे और मुख्य द्वार पर लौटते वक़्त दिखा एक खूबसूरत दृश्य जो ये है ।

इस तरह आज यात्रा समाप्त हुआ ।

धन्यवाद व आभार आपका 🙏🙏🙏

जय हिंद , जय भारत ।।

Author: सुजीत कुमार पाण्डेय

मैं सुजीत कुमार पाण्डेय बिहार के जिला बक्सर प्रखंड सिमरी गाँव गोप भरौली का निवासी हूँ ।

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